Monday, 7 November 2022

Book Review -"ठीक तुम्हारे पीछे"


मैंने मानव कौल के बारे में कई बार सुना था किन्तु कभी पढ़ा नहीं था। ये पहली ही किताब थी जो पढ़ी हैं।“ठीक तुम्हारे पीछे” एक कहानी संग्रह हैं, या फिर कह सकते हैं, एक कहानी संग्रह के रूप में छपी उपन्यास. इसे उपन्यास कहना ही ज्यादा ठीक रहेगा. क्यूंकि हर कहानी दूसरी कहानी का विस्तार लगती हैं या तो उसके साथ जुड़ी हुई है, एक तरह की पूरक लगती हैं, और हर कहानी में एक ही तो एक मुख्य किरदार हैं, जिसका नाम कभी शिव हैं, कभी लकी, कभी बिक्की और कभी... कोई नाम ही नहीं. वैसे उस बिना नाम वाले किरदार को हम चाहे तो हमारे नाम से भी बुला सकते हैं, और चाहे लेखक के खुद के नाम से भी,हमारे नाम से बुलाना ज्यादा ठीक रहेगा।

हमे लगता है की हर कहानी में यह नाम और बिना नाम वाला मुख्य किरदार कुछ खोज रहा होता हैं. कभी एक नीलकंठ की उड़ान में, कभी एक पतंग बेचने वाले के हाथो में और कभी एक तस्वीर में. वो क्या खोज रहा हैं??? यह शायद उसको भी पता नहीं या पता होते हुए भी, वह उसे खोजने में असमर्थ रहता हैं।अगर हम गौर से पढते तो हमे लगेगा कि हम भी वही खोज रहे हैं, जो वह किरदार खोज रहा हैं,वो किरदार आखिर मैं हार जाता हैं और हम भी कही पर, उसे खोजते खोजते हार चुके होते हैं. उसका वो पूरा सफर हमारा सफर लगता है। वैसे देखा जाए तो दो कहानियों में वह खोज पूरी हुई दिखती हैं, जैसे उनकी पहली कहानी, “आसपास कहीं” और छठी कहानी, “माँ.” लेकिन ज्यादातर कहानियों में, मुख्य किरदार वही पर आकर रुक जाता हैं, जहाँ से उसने शुरुआत की थी.

मानव कौल ने जिस तरह से गम्भीर बातों को भी एक लाइन में, हल्के फुल्के अंदाज़ में कहा है वह सच में बहुत शानदार है। जैसा कि कुछ कहानियां बहुत ज़्यादा लेयर्ड हैं इसलिए एक बार पढ़ने में पता नहीं चलता कि क्या हो रहा है, क्या कहा जा रहा है। आपको एक से अधिक बार पढ़ना पड़ेगा, कहानियों में गहरे उतरने के लिए। पढ़ते हुए हर बार कुछ नया आपके हाथ लगेगा। यदि प्रयोग पसंद करते हैं, कुछ नया पढ़ने की चाहत है तो यह कहानी संग्रह आपको पसंद आएगा। 

इन कहानियों से हमे क्या पता चलता हैं ??? यही कि हमारी जैसी सोच रखने वाले एक हम ही नहीं. कुछ और भी हैं, जो हमारी तरह बारिश का इंतज़ार कर रहे हैं. जिनको समझकर अकेलापन अकेलापन नहीं लगता, एक महोत्सव लगता हैं, एक बारिश के इंतज़ार का महोत्सव.

कहानी के कुछ अंश / कोट्स 

👉"छोटी छोटी व्यस्तताऐ आदमी को कॉकरोच बना देती हैं। फिर उसे लगता है कि वह कभी भी नहीं मरेगा।"

👉"एक सन्नाटा है मेरे अगल - बग़ल। इस सन्नाटे के ढेरों शोर हैं । मैं अपने अकेलेपन में अलग - अलग शोर चुनता हूँ । सुनता हूँ । पर मेरे अकेलेपन में एक आहट है जो हमेशा बनी रहती है कि बाहर कोई है । कोई आने वाला है । मुझे असल में हमेशा किसी न किसी का इंतजार रहता । ना .. ना .. ना ... किसी न - किसी का नहीं , किसी का । कोई है जिसे मैं नहीं जानता हूँ या जानता हूँ ठीक तुम्हारे पीछे 124 पर मिला नहीं हूँ । या मिलना चाहता हूँ बेसब्री से। ऐसा कोई आने ही वाला है । अचानक दरवाजे पर आहट होगी और मेरे दरवाजा खोलते ही मुझे वह दिख जाएगा । वह जिसका मैं सालों से या शायद जबसे मुझे याद है तब से , इंतजार करता आ रहा हूँ । मुझे हमेशा से लगता था कि मैं अकेला रह रहा हूँ । जबकि मैं क़तई अकेला नहीं रह रहा हूँ । मैं हमेशा इंतज़ार में हूँ उस एक के जो बस आने को है । इसका मतलब मैं हमेशा से उस एक के साथ रह रहा हूँ और रहता रहूँगा जो कभी भी नहीं आएगा ।"

👉 "हम कितना fiction में जीते हैं ! जीना बहुत क्षणिक होता है । कभी कभी हम किसी आश्चर्य को जी लेते हैं । उसके पहले और बाद में हम fiction में ही रहते हैं ।"

👉"मुझे कोरे पन्ने बहुत आकर्षित करते हैं। मैं कुछ देर कोरे पन्नों के सामने बैठता हूँ तो एक तरह का संवाद शुरू हो जाता है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे देर रात चाय बनाने की आदत में मैं हमेशा दो कप चाय बनाता हूँ, एक प्याली चाय जो अकेलापन देती है वह मैं पंसद नहीं करता। दो प्याली चाय का अकेलापन असल में अकेलेपन के महोत्सव मनाने जैसा है”

👉"यह एक बहुत बड़ी प्रदर्शनी है । मेरी बाल्कनी में वही कपड़े सूख रहे हैं जैसा लोग मुझे देखना - सुनना चाहते हैं । मैं भी लगातार उन्हीं कपड़ों को धोती - सुखाती हूँ जिन कपड़ों में लोग मुझे देखना चाहते हैं । तुम्हें पता है यह हिंसा है , हमारी ख़ुद पर ? और इसीलिए शायद हम उन खेलों के बारे में बार - बार सोचते हैं जिन्हें खेलना हमने बहुत पहले छोड़ दिया था । जिन्हें अगर खेल लेते तो शायद हम आज जीत जाते।"


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